शनिवार, 26 अगस्त 2017

एहसास

माँ  बनने  का  पल . ये   जिंदगी  का  कितना  हसीन   लम्हा  है  ..

        माँ  बनना  ऐसे  है  जैसे  आप  खुद  में  नयी  दुनिया  खोज  रहे  हो , रंग  बिरंगे  सपने  बुन  रहे  हो , अस्मा  से  तारे  तोड़  रहे  हो . अपने  अंदर  इतने  नए  नए  बदलाव  महसूस  होने  लग  जाते  है .  एक  नन्हा  सा  फूल  आपकी  जिंदगी  में  खिलने  लगता  है . ऐसा  नन्हा  सा  फूल  जो  आपको  खुशिया  ही  खुशिया  देनी  शुरू  कर  देता  है . दुनिया  में  आने  से  पहले  ही  आपकी  जिंदगी  में  हज़ारो  रंग  बिखेर  देता  है . आँखों  में  फिर   से  नए  नन्हे  सपनो  की  शुरुआत  हो  जाती  है .

                                        कितना  हसीन  होगा  वो  लम्हा  जब  बेबी  के  कोमल  हाथ  मेरी  हथेलियो  पर  होंगे , नन्हे  से  पैर मेरी  गोद  में  खेलेंगे , नन्ही  सी   आंखे  मुझे  प्यार  से  देखेगी , गुलाब  से  होंटो  पर  मासूम  सी  मुस्कान  होगी , मेरी आँखों  से  दुनिया  देखेगा .

   माँ  बनना  एक  तरह  से  खुद  के  बारे  में  बहुत  कुछ  सिखने  जैसा  है . भगवान  ने  औरत  की  रचना  ही  ऐसी  की  है  के  वो  अपने  अंदर  एक  नन्ही  सी  जान  को  पाल  सकती  है . माँ  बनना  दुनिया  का  सबसे  प्यारा  तोहफा  है .

शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

यही है नारीत्व की चिर-कामना कि उसके आगे समर्पित हो जो मुझसे बढ़ कर हो। इसी मे नारीत्व की सार्थकता है और इसी में भावी सृष्टि के पूर्णतर होने की योजना। असमर्थ की जोरू बन कर जीवन भर कुण्ठित रहने प्रबंध कर ले, क्यों? पार्वती ने शंकर को वरा, उनके लिये घोर तप भी उन्हें स्वीकीर्य है। शक्ति को धारण करना आसान काम नहीं। अविवेकी उस पर अधिकार करने के उपक्रम में अपना ही सर्वनाश कर बैठता है। जो समर्थ हो, निस्पृह, निस्वार्थ और त्यागी हो, सृष्टि के कल्याण हेतु तत्पर हो, वही उसे धारण कर सकता है- साक्षात् शिव। नारी की चुनौती पाकर असुर का गर्व फुँकार उठता है, अपने समस्त बल से उसे विवश कर मनमानी करना चाहता है। वह पाशविक शक्ति के आगे झुकती नहीं, पुकार नहीं मचाती कि आओ, मेरी रक्षा करो! दैन्य नहीं दिखाती -स्वयं निराकरण खोजती है - वह है पार्वती। उन्हें बचाने शिव दौड़ कर नहीं आते। स्वयं निराकरण करने में समर्थ है -वह साक्षात् शक्ति है

गुरुवार, 20 जून 2013

इंतजार

बहुत दूर आसमान में 
चमकते देखा था कल उसे 
एक बार उसके हक में दुआ की थी 
लगता है कुबूल हो गई 
उस तक पहुँचना नामुमकिन तो न था 
सफर बहुत लंबा भी न था 
पर कदम जाने क्यों उठे ही नहीं 
और अचानक शाम हो गई 
कई दिनों बाद खिली थी धूप थोड़ी 
सोचा कुछ गम सूख जाएँगे 
जाने कहाँ से बरसात हो गई 
आँखें अरसे से बुन रही थी ख्वाब 
कि अगली सुबह सुहानी होगी 
पर इस बार रात कुछ लंबी हो गई 
वक्त की धूल बिखर गई थी 
खुशियों की शाखों पर 
जब हटाई तो पाँखुरी बदरंग हो गई 
समंदर का खारापन 
तुम्हें कभी भाता न था 
तुम्हारी तस्वीर को मगर अब 
भीगने की आदत हो गई 
तुमसे मिले बीते बरस कई 
अब न लौटकर आ सको तो क्या 
यह गली अब इंतजार के नाम हो गई।

सोमवार, 28 नवंबर 2011




Hawa ne darkht ke patton se
jane kay kaha
darkht par bethe sare
parinde ud gaye
ek arsa guzar gaya
loat kar bhi nahi aye
shakhon se toot kar
girne lage pile patte!

जवाब

कुछ सवालों के जवाब नहीं होते
शब्द टूट कर बिखरते हैं
यहाँ शब्द हिलते होटों की जुम्बिश हैं
फिर आवाज़ें
आवाज़ें तो सुनी जाती हैं 
आवाजों को कब देखा जा सकता है 
फिर आँखें क्यौं बोलती हैं
शायद आँखे खिड़कियाँ होती हैं
दिल के तहखानों की
झूट की दुनियाँ में 
सच गूंगा है
बूढ़ी हथेली की रेखाओं की तरहा
सब कुछ गडमड 
चेहरे मुखोटा बदल कर सामने आ जाते है
मगर खामोशी के अपने खतरे 
सवाल होते है तो 
जवाब खोजने की शिद्द्त भी
बनी रहती है !

Saare din ka
dhul se bhara
dhup se tapa
thaaka hua lal suraj
palken jhapka kar
dekhti hai shaam use!.