गुरुवार, 1 सितंबर 2011

यह किस तरह की बारिश
जो रोज होती है अलग अलग समय
कौन पौंछता होगा उसके चेहरे को,

टकराते टूटते संभालते अपने आप
को
मिटाते किसी आत्मलाप को किनारों से
पुरातीत सीत्कार के साथ
पर फिर एक पल झिझक
जैसे मुड़कर कोई देखता कुछ याद कर


जो समुंदर कहीं नहीं पहुँच पाया वो उड़ चला बादल बन,
अक्सर ऐसा ही होता है
पर कुछ होते हैं जो
शायद ... बन जाते हैं आकाश...