गुरुवार, 21 जुलाई 2011

मैं तुझसे अपना ताउरुफ़
कैसे करवाऊजिंदगी
तू रोज़ मिलती है मुझको
फिर भी लगती है अजनबी
गुल तब्बसुम के यूँ ही खिलतें रहे
हम आपसे आप मिलते रहें
ये मोहब्बत के सिलसिले
तमाम उम्र यूँ ही चलते रहे ............................................................



mai

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

Achha Lagta Hai...


अच्छा लगता है ..
धुप से झुलसते बदन को ,
तुम्हारे गेसुओं की छाँव..

अच्छा लगता है ..
प्यास से तडपते होंठो को ,
तुम्हारे भींगे होंठो का स्पर्स ..


रात की नीरवता में
तारों को निहारना
चाँद की शीतल फुहारों में
कामाग्नि में धधकती
तुम्हारे बदन का साथ
अच्छा लगता है..

अच्छा लगता है..
पा कर इन गहरी आँखों में ,
अपनी मंजिल का अंत !!!                                              


                     ०९/०८/९८ ...०९:४५ p .म
                          मनोज कुमार