सोमवार, 28 मार्च 2011

सुन्दरता..!!!

सुन्दरता चेहरे पे नहीं,
दिल में नज़र आती है ।
हजारों के समूह में प्रियतमा,
प्रियतम को ही नजर आती है ।
मानवता कहने में नहीं,
कर-गुजरने में नजर आती है ।
दोस्ती दोस्तों की संख्या में नहीं,
एक सच्चे दोस्त में नजर आती है ।
कविता की गहराई शब्दों में नहीं,
लिखने वाले के भाव में नजर आती है ।
बड़ी सी कविता क्यूँ लिखूँ ,
मेरी बात मेरी सखी यूँ ही समझ जाती है...

maithili folk song

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

यूँ ही.....

जाते जाते वो यूँ ही सारी बात खत्म कर गया ।
मुहँ से कुछ भी ना कहा ,सारी बात खत्म कर गया ।
एक दिन मिला ऎसे ,सारी मुलाकात खत्म कर गया ।
कुछ सिलसिले शुरू किये थे उसने,
लेकिन अब वो हर शुरूवात खत्म कर गया ।
कुछ सपनों को मेरी निगाहों में बसा के वो ,
मेरे दिल से हर जस्बात खत्म कर गया ।
रुठा था तो मना लेते ,तन्हा था तो बुला लेते ,
कुछ यूँ हुआ के मिलने के सब हालात खत्म कर गया ।
उसने पुछे थे कुछ सवाल ,कुछ जवाब गलत दिये हमने ,
अब नहीं सुनता कहता हैं वो हर सवालात खत्म कर गया

गुरुवार, 24 मार्च 2011

Unforgettable Mohammad Rafi

एक बार चांदनी रात में मैंने रफ़ी साहब की आवाज़ में गया ये गाना "खोया खोया चाँद खुला आसमान "और मै उनकी फैन ,एसी ,कूलर और नजाने क्या -२ हो गई !मेरा पहला प्यार उनकी आवाज़ ही थी!मै केवल उन्ही के गाने सुनती मुझे तो ये लगने लगा था जैसे वो मेरे लिए ही गा रहें हैं मै आँखे बंद कर गाने सुनती और गानों में ही खो सी जाती ....मेरी बड़ी दीदी उनको "अजीज़ " जी का गाना पसंद था ..वो मुझ से कहती मै तो अजीज़ जी से शादी करुँगी !तो मैंने कहा एसा हो सकता है क्या???तो वो बोली हाँ क्यों नहीं हो सकती ..तो मै बोली तो फिर मै भी रफ़ी जी से शादी करुँगी ..वो बोली अरे.. तुम कैसे उनसे शादी करोगी ?तुम उनसे शादी नहीं कर सकती ..मै बोली जब तुम अजीज़ से शादी कर सकती हो तो मै क्यों नहीं...??क्यूंकि वो अब इस दुनियां में नहीं है ....तब मै रोने लगी थी..लेकिन अब ये सब सोंच कर होंठो पर मुस्कान आ जाती है....लेकिन उनकी आवाज़ मेरी रूह में समाई हुई है जिसमे कभी भी नहीं भूल सकती........"तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे जब कभी .कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग -२ तुम भी गुनगुनाओगे "..

बुधवार, 23 मार्च 2011

कहते हैं आप कविता नही लिखते कविता आपको लिखती है , पता नही मैंने इस कविता को और इस कविता ने मुझे कितना लिखा | मेरे लिए फर्क करना मुश्किल है ....
क्या लिखूँ
कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ
या दिल का सारा प्यार लिखूँ ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
कुछ अपनो के ज़ाज़बात लिखू या सापनो की सौगात लिखूँ ॰॰॰॰॰॰
मै खिलता सुरज आज लिखू या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ ॰॰॰॰॰॰
वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की सान्स लिखूँ
वो पल मे बीते साल लिखू या सादियो लम्बी रात लिखूँ
मै तुमको अपने पास लिखू या दूरी का ऐहसास लिखूँ
मै अन्धे के दिन मै झाँकू या आँन्खो की मै रात लिखूँ
मीरा की पायल को सुन लुँ या गौतम की मुस्कान लिखूँ
बचपन मे बच्चौ से खेलूँ या जीवन की ढलती शाम लिखूँ
सागर सा गहरा हो जाॐ या अम्बर का विस्तार लिखूँ
वो पहली -पाहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँ
सावन कि बारिश मेँ भीगूँ या आन्खो की मै बरसात लिखूँ
गीता का अॅजुन हो जाॐ या लकां रावन राम लिखूँ॰॰॰॰॰
मै हिन्दू मुस्लिम हो जाॐ या बेबस ईन्सान लिखूँ॰॰॰॰॰
मै ऎक ही मजहब को जी लुँ ॰॰॰या मजहब की आन्खे चार लिखूँ॰॰॰

कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ
या दिल का सारा प्यार लिखूँ ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

गुरुवार, 17 मार्च 2011


रंगों की बरात लिए वसंत आता है तो आनंद से सारा परिवेश सराबोर हो उठता है। वसंत और कामदेव का संबंध शिव के साथ भी है। शिव काम को भस्म भी करते हैं और पुनर्जीवन भी देते हैं। शिव पुरुष भी हैं और स्त्री भी।
फूटे रंग वासंती, गुलाबी,
लाल पलास, लिए सुख, स्वाबी,
नील, श्वेत शतदल सर के जल,
चमके हैं केशर पंचानन में
होली भारतीय समाज का एक  प्रमुख त्यौहार हैजिसका लोग बेसब्री के साथ इंतजार करते हैं। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रूपों में होली मनाई जाती है। रबी की फसल की कटाई के बाद वसन्त पर्व में मादकता के अनुभवों के बीच मनाया जाने वाला यह पर्व उत्साह और उल्लास का परिचायक है। अबीर-गुलाल व रंगों के बीच भांग की मस्ती में फगुआ गाते इस दिन क्या बूढ़े व क्या बच्चेसब एक ही रंग में रंगे नजर आते हैं वसंत बर्फ के पिघलने, गलने और अँखुओं के फूटने की ऋतु है। ऋतु नहीं, ऋतुराज। वसंत कामदेव का मित्र है। कामदेव ही तो सृजन को संभव बनाने वाला देवता है। अशरीरी होकर वह प्रकृति के कण कण में व्यापता है। वसंत उसे सरस अभिव्यक्ति प्रदान करता है। सरसता अगर कहीं किसी ठूँठ में भी दबी-छिपी हो, वसंत उसमें इतनी ऊर्जा भर देता है कि वह हरीतिमा बनकर फूट पड़ती है। वसंत उत्सव है संपूर्ण प्रकृति की प्राणवंत ऊर्जा के विस्फोट का। प्रतीक है
होली मेरे लिए सबसे बड़ा त्यौहार है क्यूँ की होली के दिन पूरी आज़ादी के साथ मस्ती धमा-चोकड़ी कर सकतें हैं और कोई रोकने वाला भी नहीं होता !मस्ती, खाना और गाना इसी का तो नाम होली है पर इस दिन हमें ये भी ख्याल रखनी उतनी ही जरुरी है की मेरे कारण किसी को चोट न पहुंचे न ही किसी का दिल दुखे ! नहीं तो रंग में भंग होते भी देर न लगेगी !शादी के बाद से अब मै होली में उतनी मस्ती तो नहीं कर पाती हूँ अपने पति और बच्चों के साथ ही थोडा बहुत होली खेल लेती हूँ क्यूंकि मेरा ज्यादा समय तो मालपुए ,गुघिया और दही बड़ा बनाने में ही बीत जाता है होली का मै हर साल बेसब्री के साथ इंतजार करती हूँ भारतीय संस्कृति में उत्सवों और त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। हर संस्कार को एक उत्सव का रूप देकर उसकी सामाजिक स्वीकार्यता को स्थापित करना भारतीय लोक संस्कृति की सबसे बडी विशेषता रही है। भारत में उत्सव व त्यौहारों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है और हर त्यौहार के पीछे एक ही भावना छिपी होती है- मानवीय गरिमा को समृद्ध करना। शायद यही कारण है कि एक समय किसी धर्म विशेष के त्यौहार माने जाने वाले पर्व आज सभी धर्मों के लोग आदर के साथ हँसी-खुशी मनाते हैं।आप सब को मेरे ओर से होली की ढेर सारी बधाइयाँ हैप्पी होली... नेहा ठाकुर

मंगलवार, 15 मार्च 2011

ये कैसा तुम्‍हारा जादू वसंत
तन मन दोनों बौराए
पलक झपकती नहीं
इंतज़ार अपने दीवाने का
ये आँखें करती हैं
सच कहती हूँ वसंत
तुम्‍हारा आना मन को
बहुत भाता है
तुम्‍हारे आने से
आँचल मेरा भर जाता है
अपार खुशियों से........
सब कुछ छूट जाता है पर ये दुर्भाग्य नही छूटता .........ये दर्द, आंसू ,
प्रेम, यादें, खालीपन, हमारा साथ नही छोड़ता..................संग चलती
रहते है बिना रुक जीवन की तरह ......................कभी कभी लगता है जब
सब का साथ छूट जाना है तो ये भी हमारा साथ क्यो नही छोड़ देते l
उलझनों ने हम दोनों को
कर दिया बेस्वाद l
लौट कर आना चाहूँ भी तो कैसे.....?
क्या लाऊँगी तुम्हारे लिए
नफरतों के गुलाब
और आरोपों के झरते गुलमोहर

नहीं दोस्त, मुझे जाने दो
तुम्हारे लिए, मैं तुम जैसी नहीं रही l
तुम्हारे ही कारण, मैं बहुत कड़वी हो रही हूँ।
इसे अफवाह मत समझना
यह सच है, मैं भीतर से कड़वी हो रही हूँ।

दिल की कोमल धरा पर
धँसी हुई है
तुम्हारी यादों की किरचें
और
रिस रहा है उनसे
बीते वक्त का लहू,
कितना शहद था वह वक्त
जो आज तुम्हारी बेवफाई से
रक्त-सा लग रहा है।
तुम लौटकर आ सकते थे
मगर तुमने चाहा नहीं
मैं आगे बढ़ जाना चाहती थी
मगर ऐसा मुझसे हुआ नहीं।

तुम्हारी यादों की
बहुत बारीक किरचें है....
दुखती हैं
पर निकल नहीं पाती
तुमने कहा तो कोशिश भी की।
किरचें दिल से निकलती हैं तो
अँगुलियों में लग जाती है l
कहाँ आसान है
इन्हें निकाल पाना
निकल भी गई तो कहाँ जी पाऊँगी
तुम्हारी यादों के बिना।

उत्ताप दोपहरी की
ठहरी हुई तपिश में
तुम्हारी आवाज का एक टुकड़ा
शहद की ठंडी बूँद सा
घुलता रहा मुझमें शाम तक।

टूट-टूट कर बिखरते अनारों-सी
तुम्हारी आतिशी हँसी
मेरे मन की कच्ची धरा पर
टप-टप बिखरती रही,
मैं ढूँढती रही तुम्हें
बुझे हुए अवशेषों में,
झुलसती रही रात भर।

तुम्हारी आवाज का टुकड़ा भी
घुलने के बाद अटकता रहा,
फँसता रहा।
बेरहम बादल
बेमौसम बजता रहा,
बिन बरसे हँसता रहा।
Mere Liye तुम
नहीं हो एक शब्द
तुम
नहीं हो पल भर का साथ
तुम
नहीं हो केवल याद
तुम.....?
तुम हो मेरे जीवन का वह राज
जिसे मैं, कभी ना दे सकी आवाज.........।

शनिवार, 12 मार्च 2011

बात कम कीजिये जहानत को छूपाते रहिये



ये नया शहर है कोई दोस्त बनाते रहिये ...


दुश्मनी लाख सही ख़तम न कीजिये रिश्ता..


दिल मिले न मिले हाँथ मिलते रहिये .....निदा फाजली


बुधवार, 2 मार्च 2011

आते ही
जीवंत हो उठता है यह घर
तुम्हारे चले
तुमने

मेरी यादों की धरती पर
अपना घर बना रखा है
घर कि
जिसके द्वार
खुले रहते हैं सदैव।

जब जी चाहता है
तुम आ जाते हो इस घर में
जब जी चाहता है
चले जाते हो इससे बाहर।

तुम्हारे आने का
न कोई समय तय है
न जाने का।
तुम्हारे  जाने से
पसर जाता है इसमें
मरघटों-सा सन्नाटा।

तुम्हें हाथ पकड़ कर
रोक लेने की
चाहत भी तो पूरी नहीं होती
क्योंकि
न जाने कहाँ छोड़ आते हो
तुम अपनी देह
इस घर में आने से पहले।

मंगलवार, 1 मार्च 2011

मेरे जीवन में अचानक खुला



तुम एक ऐसा पृष्ठ हो


जो सौ सोपानों से भी अधिक मूर्तिमान है।


तुम ना तो मेरा बीता हुआ कल हो


और न आने वाला कल


तुम सिर्फ़ एक सशक्त वर्तमान


मेरी आत्मा से प्रस्फुटित


वैदिक ऋचाओं-से पवित्र


मेरे अस्तित्व की नई पहचान


अपरिमाणित हो कर भी


एक अनन्य सत्य की भाँति


मेरे प्राण की संजीवनी


सर्वशक्तिमान!
अभी धुप है तो जी भर के देख ले उसे ...... 
चला गया तो चिराग लेके ढूंढ़ते कहाँ  फिरोगे उसे ....