मैं तुझसे अपना ताउरुफ़
कैसे करवाऊजिंदगी
तू रोज़ मिलती है मुझको
फिर भी लगती है अजनबी
गुल तब्बसुम के यूँ ही खिलतें रहे
हम आपसे आप मिलते रहें
ये मोहब्बत के सिलसिले
तमाम उम्र यूँ ही चलते रहे ............................................................
कैसे करवाऊजिंदगी
तू रोज़ मिलती है मुझको
फिर भी लगती है अजनबी
गुल तब्बसुम के यूँ ही खिलतें रहे
हम आपसे आप मिलते रहें
ये मोहब्बत के सिलसिले
तमाम उम्र यूँ ही चलते रहे ............................................................