अच्छा लगता है ..
धुप से झुलसते बदन को ,
तुम्हारे गेसुओं की छाँव..
अच्छा लगता है ..
प्यास से तडपते होंठो को ,
तुम्हारे भींगे होंठो का स्पर्स ..
रात की नीरवता में
तारों को निहारना
चाँद की शीतल फुहारों में
कामाग्नि में धधकती
तुम्हारे बदन का साथ
अच्छा लगता है..
अच्छा लगता है..
पा कर इन गहरी आँखों में ,
अपनी मंजिल का अंत !!!
०९/०८/९८ ...०९:४५ p .म
मनोज कुमार
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