सोमवार, 28 नवंबर 2011

जवाब

कुछ सवालों के जवाब नहीं होते
शब्द टूट कर बिखरते हैं
यहाँ शब्द हिलते होटों की जुम्बिश हैं
फिर आवाज़ें
आवाज़ें तो सुनी जाती हैं 
आवाजों को कब देखा जा सकता है 
फिर आँखें क्यौं बोलती हैं
शायद आँखे खिड़कियाँ होती हैं
दिल के तहखानों की
झूट की दुनियाँ में 
सच गूंगा है
बूढ़ी हथेली की रेखाओं की तरहा
सब कुछ गडमड 
चेहरे मुखोटा बदल कर सामने आ जाते है
मगर खामोशी के अपने खतरे 
सवाल होते है तो 
जवाब खोजने की शिद्द्त भी
बनी रहती है !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें