सोमवार, 4 अप्रैल 2011

कृष्णवर्णा, मुण्डमालिनी भीमरूपा भयंकरा!





काली करालवदना, नरमाला विभूषणा,





भृकुटी कुटिलात्तस्या शुष्कमाँसातिभैरवा





अतिविस्तारवदना, जिह्वाललनभीषणा





निमग्नारक्तनयनानादापूरित दिङ्मुखा


उसके सभी रूप वरेण्य हैं, जगत् के लिये काम्य और कल्याणकारी हैं। माँ के कोप में भी करुणा की अंतर्धारा विद्यमान है। दण्ड पा चुके महिषासुर को सायुज्य प्रदान करती है, अपने से जोड़ लेती है, सदा के लिये। भटका हुआ प्राणी माँ की छाया में चिर- आश्रय पा लेता है।

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