सोमवार, 4 अप्रैल 2011

त्योहार

भारतीय नारी के हर त्यौहार पर पार पार्वती ज़रूर पुजती हैं, उनसे सुहाग लिये बिना विवाहताओं की झोली नहीं भरती। सहज प्रसन्नमना हैं गौरा। कोई अवसर हो मिट्टी के सात डले उठा लाओ और चौक पूर कर प्रतिष्ठत कर दो, गौरा विराज गईं। पूजा के लिये भी फूल-पाती और जो भी घर में हो खीर-पूरी, गुड़, फल, बस्यौड़ा और जल। दीप की ज्योति भी उनका स्वरूप है ज्वालारूपिणी वह भी जीमती है! पुष्प की एक पाँखुरी का छोटा सा गोल आकार काट कर रोली से रंजित कर गौरा को बिन्दिया चढ़ाई जाती है। और बाद में सातों पिंडियों से सात बार सुहाग ले वे कहती हैं। माँ ग्रहण करो यह भोग और भण्डार भर दो हमारा। अगले वर्ष फिर इसी उल्लास से पधारना और केवल हमारे घर नहीं हमारे साथ साथ, बहू के मैके, धी के ससुरे, हमारे दोनों कुलों की सात-सात पीढ़ियों तक निवास करो। विश्व की कल्याण-कामना इस गृहिणी के, अन्तर में निहित है क्योंकि यह भी उसी का अंश है, उसी का एक रूप है। यह है हमारे पर्वों और अनुष्ठानों की मूल-ध्वनि!

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