शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

यही है नारीत्व की चिर-कामना कि उसके आगे समर्पित हो जो मुझसे बढ़ कर हो। इसी मे नारीत्व की सार्थकता है और इसी में भावी सृष्टि के पूर्णतर होने की योजना। असमर्थ की जोरू बन कर जीवन भर कुण्ठित रहने प्रबंध कर ले, क्यों? पार्वती ने शंकर को वरा, उनके लिये घोर तप भी उन्हें स्वीकीर्य है। शक्ति को धारण करना आसान काम नहीं। अविवेकी उस पर अधिकार करने के उपक्रम में अपना ही सर्वनाश कर बैठता है। जो समर्थ हो, निस्पृह, निस्वार्थ और त्यागी हो, सृष्टि के कल्याण हेतु तत्पर हो, वही उसे धारण कर सकता है- साक्षात् शिव। नारी की चुनौती पाकर असुर का गर्व फुँकार उठता है, अपने समस्त बल से उसे विवश कर मनमानी करना चाहता है। वह पाशविक शक्ति के आगे झुकती नहीं, पुकार नहीं मचाती कि आओ, मेरी रक्षा करो! दैन्य नहीं दिखाती -स्वयं निराकरण खोजती है - वह है पार्वती। उन्हें बचाने शिव दौड़ कर नहीं आते। स्वयं निराकरण करने में समर्थ है -वह साक्षात् शक्ति है

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