गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

प्रेम में प्रेमास्पद आगे बदने की ख्वाइश रखता है और अपेक्षाएं करता है कि प्रतिध्वनि भी



समान होगी और प्रतिध्वनि जब समानांतर नहीं होती तब टूटता है प्रेम, शाश्वत सत्य है


कि अगर ताल से ताल नहीं मिलती तो संगीत भी बेसुरा हो जाता है क्यूंकि प्रेम हमारे


जीवन का अंग है जीवन नहीं, साँसों कि लय है सांस नहीं .


प्रेम उदय तो होता है एह क्षणिक आकर्षण से पर पलता और पुष्ट होता है विश्वास के विशाल


वृक्ष के तले और तब्दील हो जाता है स्वयं एक विशाल वृक्ष में जिसके तले जीवन के अन्य


आवेग पलते है जैसे ममता क्रोध इत्यादि और रसमय कर देता है खुद को अपनी ही


प्रतिध्वनियों में पर अंत नहीं होता प्रेम का जब तक साँसे साथ नहीं छोडती


या स्पन्दन्हीन नहीं होता मन


जिसका अंत हो जाय वह प्रेम नहीं वासना है जो सिर्फ धोखा देती है प्रेम का,

पर प्रेम जैसी विशाल पवित्र और निरंतर नहीं होती. वासना में जुनून होता है

प्रेम शांत अविरल मंजिल कि ओर बढता है प्रतिउत्तर न मिलने पर मूक हो जाता है

पर  ख़तम नहीं होता ......नेहा प्रेम दिवस पर विशेष .......

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