मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011


देखते ही

किसी तरफ़

एक रिश्ता कायम कर

उसे

सदियों पुराना

साथी बना लेती थीं

पर आज

यकायक

देख कर

किसी को

शायद...!

ये ना जाने कौन है...?

विचार कर

खुद-ब-खुद

चुरा ली जाती हैं

कभी-कभी सोचता हूं

किसी की तरफ़

उठ कर

रुक क्यों नहीं जाती...!

पत्थरा क्यों नहीं जाती...!

ये आंखें......

2 टिप्‍पणियां: