शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

स्मृति

  • आज भी कितने ही लोग हमारे बीच ऐसे है ‍िजनकी स्मृतियों के विराट समुद्र में इस एक पतंग के बहाने बहुत कुछ आलोडि़त होता है। कितनी ही दुर्बल अंजुरियों में वह पतंगमयी अतीत आज भी थरथराता है। किसी ने इसे अपनी मुट्ठी में कसकर भींच रखा है । बार-बार खुलती है मुट्ठी और एक मीठी याद शब्दों में बँधकर, कपोलों पर सजकर इसी पुराने आकाश पर ऊँचा उठने के लिए बेकल हो जाती है। जब हमने जानने के लिए हथेली पसारी तो कहाँ संभल सकी वे स्मृतियाँ? अँगुलियों की दरारों से फिसलने लगी। सच ही कहा है किसी ने कि स्मृतियों को समेटने के लिए दामन भी बड़ा होना चाहिए.. नेहा ठाकुर

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर रचना है भाव पूर्ण अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. भाव पूर्ण रचना
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  3. स्मृतियों को समेटने के लिए दामन भी बड़ा होना चाहिए।

    bilkul sahi kaha
    bahut sundar

    aabhaar

    जवाब देंहटाएं