- आज भी कितने ही लोग हमारे बीच ऐसे है िजनकी स्मृतियों के विराट समुद्र में इस एक पतंग के बहाने बहुत कुछ आलोडि़त होता है। कितनी ही दुर्बल अंजुरियों में वह पतंगमयी अतीत आज भी थरथराता है। किसी ने इसे अपनी मुट्ठी में कसकर भींच रखा है । बार-बार खुलती है मुट्ठी और एक मीठी याद शब्दों में बँधकर, कपोलों पर सजकर इसी पुराने आकाश पर ऊँचा उठने के लिए बेकल हो जाती है। जब हमने जानने के लिए हथेली पसारी तो कहाँ संभल सकी वे स्मृतियाँ? अँगुलियों की दरारों से फिसलने लगी। सच ही कहा है किसी ने कि स्मृतियों को समेटने के लिए दामन भी बड़ा होना चाहिए.. नेहा ठाकुर
शुक्रवार, 14 जनवरी 2011
स्मृति
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सुंदर रचना है भाव पूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
स्मृतियों को समेटने के लिए दामन भी बड़ा होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha
bahut sundar
aabhaar