मंगलवार, 11 जनवरी 2011

आंधियां जब तेज रही थी


टहनियों में खलबली थी



दरख़्त वही जगह पर रहे

जड़े जिनकी खूब गहरी थी



खुद को घायल पाया हमने

हुस्न से जब नज़र मिली थी



एक मुलाक़ात में दिल दे बैठे

नाजनीन वो बड़ी हसीं थी



सुबह तक डूबा रहा सूरज

जाड़े की एक रात बड़ी थी



सब ने अपने होश गंवाये

ऐसी तो उसकी जादूगरी थी



तंग गलियों से जब मैं निकला

देखा तब एक सड़क खुली थी

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